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तुर्की के राष्ट्रपति रेकप तैयप एर्डोगान |
एक तरफ यूरोपीय संघ, अमेरिका
और नाटो आदि आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट हो रहे हैं, वहीं
दूसरी तरफ आतंकी संगठन मासूम बच्चों और महिलाओं समेत नागरिकों को अपना निशाना बना
रहे हैं।
यह
विडंबना ही है कि एक तरफ यूरोपीय संघ,
अमेरिका
और नाटो आदि आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट हो रहे हैं,
वहीं
दूसरी तरफ आतंकी संगठन मासूम बच्चों और महिलाओं समेत नागरिकों को अपना निशाना बना
रहे हैं। मिस्र और तुर्की में पिछले अड़तालीस घंटों के भीतर दहशतगर्दों ने जैसा कहर
बरपाया है उससे सारी दुनिया स्तब्ध है। दोनों देशों में कुल तिरसठ लोग मारे गए हैं
और दर्जनों घायल हुए हैं। तुर्की के यूरोप वाले क्षेत्र की सीमा पर स्थित और सात
पहाड़ियों के शहर के नाम से मशहूर इस्तांबुल में शनिवार की रात एक फुटबाल-मैदान में
कार में रखे बम से विस्फोट हुआ। इसके एक मिनट के बाद थोड़ी दूरी पर स्थित मक्का
पार्क में एक फिदायीन ने खुद को उड़ा लिया,
जिसमें
कोई तीस पुलिसकर्मी मारे गए। दोनों विस्फोटों में अड़तीस लोग मारे गए और दर्जनों
घायल हैं। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब एरदोगन ने इसे आतंक का घिनौना चेहरा और
हर मूल्य और नैतिकता को कुचलने वाला कदम करार दिया है। पूरे देश में राष्ट्रीय शोक
का एलान किया गया है। देश के भीतर सक्रिय एक अलगाववादी आतंकी समूह कुर्दिस्तान
वर्कर्स पार्टी से जुड़े कुर्दिस्तान फ्रीडम फाल्कंस ने दोनों हमलों की जिम्मेदारी
ली है।
गौरतलब
है कि तुर्की में कुर्द समुदाय के लोग अपने लिए अलग देश की मांग करते आ रहे हैं।
इससे पहले जून के आखिरी हफ्ते में इन्हीं कुर्दिश अलगाववादियों ने इस्तांबुल के
अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हमला किया था,
जिसमें
इकतालीस लोग मारे गए थे और ढाई सौ लोग घायल हो गए थे। आइएस के आतंकी हमलों को लेकर
पूरी दुनिया में चिंता है। यों तो कुर्द लड़ाके आइएस के खिलाफ इराकी सेना के साथ
मिलकर लड़ रहे हैं, उन्हें हथियारों की आपूर्ति भी पश्चिमी
मुल्कों से हो रही है। पर तुर्की के भीतर उनके तौर-तरीके दहशतगर्दी के ही हैं।
आइएस के आतंकवाद से लड़ने का दम भरने वाले पश्चिमी देश दूसरे आतंकी समूहों को
हथियार दें, तो यह आतंकवाद को लेकर उनकी दोहरी नीति
को ही दर्शाता है।
उधर, अफ्रीकी महाद्वीप के उत्तर-पूर्वी और एशिया के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर बसे
मिस्र की राजधानी काहिरा में एक गिरजाघर में ईसाई समुदाय के पच्चीस लोगों की
बम-विस्फोट में जान चली गई। विस्फोट तब हुआ,
जब वे
प्रार्थना के लिए एकत्र हुए थे। ज्ञात इतिहास में यह वहां के अल्पसंख्यक समुदाय
यानी ईसाइयों पर सबसे बड़ा हमला है। हालांकि किसी आतंकी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी
नहीं ली है, लेकिन समझा जाता है कि यह अपने को
जिहादी कहने वाले कुछ स्थानीय गुटों की करतूत है,
जो इससे
पहले भी ईसाई समुदाय के लोगों पर छिटपुट हमले करते रहे हैं। सोचने वाली बात यह भी
है कि आतंकवाद से पीड़ित होने के बावजूद कई
देशों
का बर्ताव संदिग्ध है। वे एक आतंकी संगठन की बाबत चिंता जताते हैं, लेकिन एक दूसरे उसी तरह के संगठन को जाने-अनजाने हथियार और वित्तीय मदद
मुहैया कराते हैं। अगर दुनिया भर में आतकंवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है तो इसके
पीछे एक बड़ी वजह यह दोहरी-तिहरी मानसिकता भी है। इसके त्रासद परिणाम काहिरा और
इस्तांबुल की ताजा घटनाओं से जाहिर हैं।
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