दुरुस्त आयद

राष्ट्रीय व प्रांतीय राजमार्गों के किनारे शराब की बिक्री प्रतिबंधित करने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश स्वागत-योग्य है। दरअसल, सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर इस तरह की पाबंदी बहुत पहले लग जानी चाहिए थी। लेकिन वैसा नहीं हो सका, तो इसकी वजह जानी-पहचानी है। हमारी सरकारें भले अक्सर सड़क सुरक्षा सप्ताह जैसी कवायद करती रहती हों, उन्हें ज्यादा फिक्र राजस्व की रहती है। लेकिन जैसा कि सर्वोच्च अदालत ने भी अपने ताजा आदेश में कहा है, राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानें चलने देने के पीछे राजस्व कोई जायज कारण नहीं हो सकता। फैसले का संदेश साफ है, मानव जीवन और लोक स्वास्थ्य सर्वोपरि है। यों अदालत ने इन दुकानों के लिए अगले साल इकतीस मार्च तक की मोहलत दी है, और इस तरह उन्हें हटाने के लिए उनके मालिकों को पर्याप्त समय दिया है, पर उसके बाद ये दुकानें वहां मौजूद नहीं रह पाएंगी। अदालत के आदेश के पीछे काम कर रही चिंता जाहिर है। राजमार्ग ज्यादा दूरी के सफर के लिए होते हैं, इसलिए उन पर वाहनों की रफ्तार अमूमन तेज होती है। भारी वाहन भी ज्यादातर राजमार्गों से ही गुजरते हैं। अगर उनके चालकों को रास्ते में हर कहीं शराब उपलब्ध हो, तो इसमें निहित खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सड़क दुर्घटनाओं का हवाला देते हुए ही राजमार्गों पर शराब की बिक्री प्रतिबंधित करने की मांग वाली याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें एक हवाला खुद सड़क परिवहन मंत्रालय की 2015 की एक रिपोर्ट का था। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल यानी 2014 में देश में सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 46 हजार लोग मारे गए थे। घायल होने वालों की तादाद इससे करीब तीन गुना ज्यादा थी। दूसरे शब्दों में, यह भी कहा जा सकता है कि भारत में हर घंटे सत्तावन सड़क हादसे होते हैं और औसतन रोजाना चार सौ लोग सड़कों पर अपनी जिंदगी गंवा बैठते हैं। कहने को भारत ने भी ‘ब्राजीलिया घोषणापत्र’ पर हस्ताक्षर किए हैं जो सड़क हादसों पर रोक लगाने और सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जारी किया गया था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने भले उत्साह से प्रतिबद्धता जताई हो, देश के भीतर व्यवहार उलटा ही रहा। बरसों केंद्र को कोई ठोस पहल करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। और जब उसने राज्यों को हिदायत जारी भी की, तो उसका कोई असर नहीं हुआ। उलटे पंजाब, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे कई राज्यों ने केंद्र की सलाह को ताक पर रखते हुए प्रांतीय राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानों के लाइसेंस और बढ़ा दिए।

इस अनुभव को देखते हुए यह उम्मीद कैसे की जा सकती थी कि सरकारें राजमार्गों पर शराब की बिक्री खुद बंद करेंगी? अगर अदालत का आदेश न आता, तो पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलता रहता। बहरहाल, शराब पीकर वाहन चलाने के अलावा सड़क हादसों के लिए कई और कारण भी जिम्मेवार हैं। मसलन, बुनियादी ढांचे की खामी। खुद भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कह चुके हैं कि भारत में सड़क हादसों की एक प्रमुख वजह सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइन भी है। इसके अलावा, हमारे देश में यातायात भले तेजी से बढ़ता गया हो, पर यातायात से संबंधित दायित्व-बोध बहुत कम है। अपात्रों के भी ड्राइविंग लाइसेंस आसानी से बन जाने से लेकर लापरवाही से गाड़ी चलाने और संकेतों तथा नियम-कायदों की अनदेखी करने तक अनेक रूपों में इसके निशान नजर आते हैं। इन कुप्रवृत्तियों का निर्मूलन भी सुरक्षित यातायात का एक अहम तकाजा है।

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