रिजर्व बैंक की निर्णय-प्रक्रिया पर पिछले दो महीने में तमाम सवाल उठे हैं। उसकी जितनी आलोचना इस दौरान हुई है, शायद ही उसके पूरे इतिहास में पहले कभी हुई हो। इसका एक कारण विपक्ष हो सकता है, जो नोटबंदी पर सरकार को घेरने की भरसक कोशिश करता रहा है। लेकिन एक बार फिर यह जाहिर हुआ है कि रिजर्व बैंक के पास कई ऐसे सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं है जो उसकी हालिया कार्य-प्रणाली और स्वायत्तता से ताल्लुक रखते हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल बुधवार को वित्त मंत्रालय की संसदीय समिति के सामने पेश हुए, मगर वे कई सवालों पर समिति को संतुष्ट नहीं कर सके। इस संसदीय समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली हैं। समिति को पटेल ने यह तो बताया कि नोटबंदी के बाद 9.2 लाख करोड़ की नई मुद्रा अब तक जारी की जा चुकी है, पर वे यह नहीं बता सके कि कितने मूल्य के पुराने नोट अब तक बैंकों में जमा कराए जा चुके हैं। जबकि काले धन से निपटने का नोटबंदी का घोषित उद्देश्य कहां तक पूरा हुआ, इसका आकलन इसी आधार पर होना है।
समिति को पटेल इस बात का भी कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए कि स्थिति कब तक सामान्य हो जाएगी। प्रधानमंत्री ने देश के लोगों से पचास दिन का समय मांगा था। पर हालत यह है कि सत्तर दिन बाद भी बहुत सारे एटीएम काफी समय सूखे रहते हैं। ऐसे में सिर्फ निकासी सीमा बढ़ाते रहने का क्या मतलब है? रिजर्व बैंक के गवर्नर दो और बातों को लेकर असहज नजर आए। एक, अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी के असर को लेकर, और दूसरा, रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को लेकर। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष समेत बहुत सारे अर्थशास्त्रियों ने नोटबंदी के चलते मौजूदा वित्तवर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान पहले से घटा दिया है। एसोचैम के एक अध्ययन ने तो लाखों लोगों की नौकरियां जाने की भी पुष्टि की है। जाहिर है, इन सब तथ्यों का सामना ऊर्जित पटेल नहीं करना चाहेंगे। उनकी मुश्किल यह है कि न तो वे इन तथ्यों को झुठला सकते हैं न कुछ ऐसा कह सकते हैं जो सरकार को नागवार गुजरे। उनके लिए गनीमत बस यह थी कि संसदीय समिति के सवालों का सामना करने के दौरान एक बहुत मुश्किल सवाल पर खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके बचाव की गुंजाइश निकाली। सबसे ज्यादा चुभने वाली बात यह रही है कि रिजर्व बैंक को अपनी स्वायत्तता और साख की फिक्र क्यों नहीं है।
सरकार यह दावा कर चुकी है कि नोटबंदी रिजर्व बैंक की सिफारिश पर की गई। जबकि रिजर्व बैंक का कहना है कि उसे सरकार ने नोटबंदी की सलाह दी थी और इसके बाद ही उसने सरकार को सिफारिश भेजी थी। दूसरी तरफ, याद करें तो प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन में रिजर्व बैंक की सिफारिश का कोई जिक्र नहीं था। इस निर्णय प्रक्रिया में रिजर्व बैंक की स्वायत्तता कहां चली गई? रिजर्व बैंक ने नोटबंदी की सिफारिश सरकार को चटपट कैसे भेज दी? क्या इसका आकलन उसने किया था कि नोटबंदी से जो हालात पैदा होंगे उनसे निपटने की तैयारी कितनी है? पूर्व में ऐसे कई मौके आए जब रिजर्व बैंक तथा सरकार का रुख अलग-अलग रहा, पर तत्कालीन सरकारों ने कभी भी रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का हनन नहीं किया। पिछले दो महीने में रिजर्व बैंक की साख को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कब हो पाएगी!
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