जिस बात को कहने से केंद्र सरकार खुद बचती रही है, उसकी तरफ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने साफ इशारा कर दिया है। उन्होंने गुरुवार को देश भर के राज्यपालों और केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपालों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए कई बातें कहीं। उनके संबोधन का कुछ हिस्सा निर्देशात्मक था तो कुछ सुझावात्मक। लेकिन उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि नोटबंदी के बाद आर्थिक मंदी जैसी स्थिति है और इससे गरीबों को होने वाली परेशानियों पर अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत है। बहुत सारे अर्थशास्त्री इस बारे में पहले ही चिंता जता चुके हैं। राष्ट्रपति की टिप्पणी से भी जाहिर है कि वे चिंताएं ठोस आकलन से उपजी थीं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी आर्थिक विषयों के गहरे जानकार हैं और एक समय देश के वित्त व वाणिज्य मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। इसलिए भी उनकी टिप्पणी काफी मायने रखती है।
उन्होंने अपने लहजे को और साफ करते हुए कहा- उद्यमशीलता की ओर बढ़ना जरूरी है, लेकिन क्या गरीब लोग इतना इंतजार कर सकते हैं? गौरतलब है कि नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों में मंदी छा गई है, खासकर असंगठित क्षेत्र में काफी संख्या में कामगार बेरोजगार हुए हैं। छोटे उद्यमियों की हालत खस्ता हुई है। नोटबंदी के मद््देनजर प्रधानमंत्री द्वारा मांगी गई पचास दिन की मोहलत बीतने के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है। ऐसे में राष्ट्रपति ने जो कहा है उसका कोई अवांतर अर्थ निकालना ठीक नहीं होगा; उनकी टिप्पणी के पीछे उनकी व्यथा और देश, खासकर कमजोर तबकों के प्रति उनकी संवेदनशीलता ही रही होगी। राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि हाल में प्रधानमंत्री की ओर से घोषित कुछ पैकेजों से देशवासियों को राहत मिल सकेगी। उनका मंतव्य शायद आवास-ऋण में ब्याज-दरों में छूट से रहा होगा।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों की भी चर्चा की। इस साल सात राज्यों में चुनाव होंगे, जिनमें पांच की घोषणा हो चुकी है। उन्होंने राज्यपालों और उपराज्यपालों को संबोधित करते हुए कहा कि होहल्ले वाली बहस और समाज को बांटने वाली सियासत पर कड़ी नजर रखना जरूरी है। राष्ट्रपति ने विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव बनाए रखने की प्राथमिकता पर जोर दिया। क्योंकि भारत की शक्ति उसकी विविधिता में है। संस्कृति, आस्था और भाषा की विविधिता भारत को विशेष बनाती है। कुल मिलाकर देखें, तो राष्ट्रपति के इस संबोधन को निरा औपचारिक नहीं कहा जा सकता है। नरमी से ही उन्होंने सरकार को एक जरूरी नसीहत दी है, ताकि वह अपनी रीति-नीति में ज्यादा दूरदर्शी और लोकधर्मी हो सके।
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