चालू वित्तवर्ष में अर्थव्यवस्था की तस्वीर कैसी रहने वाली है, इसका एक अनुमान खुद सरकारी आंकड़ों ने पेश कर दिया है। सीएसओ यानी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अपने अग्रिम आकलन में बताया है कि मौजूदा वित्तवर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 7.1 फीसद रहेगी। यह पिछले वित्तीय साल में 7.6 फीसद थी। वर्ष 2015-16 के मुकाबले आधा फीसद की कमी कुछ खास नहीं मानी जा सकती, और असल में 7.1 फीसद भी उम्मीद-भरा आंकड़ा ही कहा जाएगा। लेकिन कई कारणों से यह तसल्ली, खुशफहमी साबित हो सकती है।
पहली बात यह है कि 7.1 फीसद का अनुमान है तो पूरे वित्तीय साल के लिए, पर यह केवल सात महीनों, अप्रैल से अक्तूबर तक के आंकड़ों पर आधारित है। जबकि यह आम अनुमान है कि नोटबंदी के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में जो अफरातफरी रही, और जिस पर अब भी पूरी तरह विराम नहीं लग पाया है, उसकी वजह से दूसरी छमाही में जीडीपी का ग्राफ खासा गिर सकता है। फिर, पूरे वित्तवर्ष की वही तस्वीर कैसे होगी, जैसी सीएसओ ने पेश की है? इसलिए पूर्व सीएसओ प्रमुख प्रणब सेन और केंद्र सरकार की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रह चुके गोविंद राव समेत तमाम अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जब नवंबर से मार्च तक के आंकड़े आएंगे, तो वित्तवर्ष 2016-17 में आर्थिक वृद्धि दर सात फीसद से नीचे, यहां तक कि साढ़े छह फीसद से भी कम हो सकती है।
सीएसओ ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के जो आंकड़े हिसाब में लिये हैं, यानी अप्रैल से अक्तूबर तक के, उनके मुताबिक कृषि में उल्लेखनीय वृद्धि दिखती है, 4.1 फीसद। यह लगातार दो साल सूखा रहने के बाद अच्छे मानसून का नतीजा है। लेकिन उद्योग और सेवा जैसे अर्थव्यवस्था के दूसरे बड़े क्षेत्रों को देखें, तो उनमें गिरावट ही दिखती है, उद्योग क्षेत्र में खासकर। नोटबंदी की मार सबसे ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग पर पड़ी है, जिसका औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में हिस्सा पचहत्तर फीसद है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि दूसरी छमाही में आईआईपी कैसा होगा, और फलस्वरूप पूरे वित्तीय साल में उसका ग्राफ कैसा रहेगा। विचित्र है कि सीएसओ ने फिर भी यह उम्मीद जताई है कि दूसरी छमाही में निवेश घटने के रुझान को पलटा जा सकेगा। हालांकि सीएसओ ने माना है कि जीएफसीएफ यानी कुल निश्चित पूंजी निर्माण, जो कि निवेश का सूचक माना जाता है, मौजूदा वित्तवर्ष में 0.16 फीसद सिकुड़ जाएगा। मगर दो खास कारणों से सिकुड़न का यह अनुमान बहुत कम है। एक तो यह कि पिछले वित्तवर्ष की आखिरी तिमाही से लेकर पिछली तीन तिमाहियों में जीएफसीएफ लगातार सिकुड़ा है और सिकुड़न की गति भी बढ़ती गई है।
यह नोटबंदी से पहले का हाल था। इसलिए पूरे 2016-17 के लिए जीएफसीएफ का जो अनुमान सीएसओ ने जारी किया है वह अर्थशास्त्रियों के गले नहीं उतरा है। यों वित्तमंत्री अरुण जेटली पिछले दिनों यह दावा कर चुके हैं कि नोटबंदी के चलते राजस्व बढ़ा है, पर मौजूदा वित्तवर्ष में जीडीपी की जो दशा दिख रही है उससे अप्रत्यक्ष कर संग्रह में इजाफे के आसार नहीं दिखते। आंकड़े इस ओर भी इशारा कर रहे हैं कि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के साढ़े तीन फीसद तक सीमित रखना बहुत मुश्किल हो जा सकता है। अगर अभी जाहिर किए गए अग्रिम अनुमान और वास्तविक परिणाम में ज्यादा फर्क रहा, तो सीएसओ की साख पर आंच आएगी।
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