उत्तरी मोर्चे पर चीन-पाकिस्तान गठजोड़

चीन राजमार्गों की एक श्रृंखला का विकास कर रहा है और उत्तरी क्षेत्र के गिल्गिट-बल्टिस्तान में सेनाएं भेज रहा है। वह पूर्वी क्षेत्र में सैन्य ढांचा में सुधार कर रहा है जिससे दो मोर्चों पर युद्ध की आशंका बढ़ रही है।
चीन कई प्रकार के संकेत दे रहा है, सेना का प्रस्तावित संशोधित रक्षा रणनीति सही दिशा में एक कदम होगा। चीन के भारत के साथ सीमा युद्ध पर कभी-कभी प्रकाशित होने वाले दस्तावेजों का पूर्ण विश्लेषण किया जाना चाहिए, क्योंकि वे एक युद्ध शुरु करने की चीन की रणनीति का एक संकेत हैं, जिसे जीता जा सकता है। चीन पाकिस्तान के साथ गठजोड़ करके हमारी उत्तरी सीमा पर नवीन हथियारों की तैनाती के माध्यम से अपनी अक्रामक क्षमता बढ़ा रहा है। ऐसा आकलन है कि इससे सीमा युद्ध में सैन्य संतुलन में परिवर्तन होगा। चीन ने सैन्य आधुनिकीकरण को तीव्र किया है, जो उसकी शक्ति में भारी विस्तार करेगा।
चीन के भारी भौगोलिक सीमितताएं हैं- उसकी दक्षिणी विश्व समुद्र तक पहुंच नहीं है। इसलिए चीन के जहाजों को यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका से भारत, मलक्का और आसियान देशों से घूमकर जाना होता है। चीन की अक्रामक सैन्य भंगिमा के कारण क्षेत्र के अधिकांश देशों के साथ उसकी गंभीर समस्याएं हैं। चीन की अर्थव्यवस्था के लिए पाकिस्तान बहुत महत्वपूर्ण है। यदि चीन पाकिस्तान से होकर अरब सागर तक पहुंच का मार्ग हासिल कर लेता है तो उससे कई लाभ होंगे। इसे पूरा करने की रणनीति के कारण CPEC की उत्पत्ति हुई। यह गलियारा राजमार्गों और रेलमार्गों का होगा जो चीन में काशगर से पाकिस्तान (बलूचिस्तान) में ईरान सीमा के समीप अरब सागर तट पर ग्वादर बंदरगाह तक जाएगा। पाकिस्तान में CPEC से संबंधित सभी कार्य चीन द्वारा मुफ्त में या उपेक्षणीय कर्ज से किए जाएंगे।
CPEC क्या है?
यह चार या छह लेन का एक्सप्रेसवे है जो पाकिस्तान में उत्तर से दक्षिण को जाएगा। इसमें चार भिन्न मार्ग हैं। सभी प्रमुख रेल लाइनों को उन्नत करके दोहरा बनाया जाएगा और उनकी क्षमता 160 kph की जाएगी। एक छह से आठ लेन का सुपर एक्सप्रेस वे कराची से ग्वादर और हैदराबाद तक बनाया जाएगा। पूरे पाकिस्तान में इस मार्ग पर असंख्य, कोयला, तापीय, सौर या जल विद्युत परियोजनाएं निर्मित की जाएंगी। इस राजमार्ग पर एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, अस्पताल, स्कूल, कालेज, तकनीकी संस्थान और लाहौर में एक मेट्रो लाइन का निर्माण भी प्रस्तावित है।
काराकोरम राजमार्ग पर होने के कारण यह भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह चीन और पाकिस्तान को जम्मू एवं कश्मीर के द्वारा जोड़ता है जिस पर अक्टूबर 1947 ई. से भारत का वैधानिक अधिकार है।
गिल्गिट-बल्टिस्तान का इलाका वैधानिक रुप से भारत के जम्मू एवं कश्मीर राज्य का अंग है लेकिन इस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है। चीन ने भी जम्मू एवं कश्मीर के उत्तरी और पूर्वी हिस्से पर अवैध कब्जा कर रखा है। उसने शाक्सगाम घाटी (पाकिस्तान द्वारा 1960 के दशक में उपहार के रुप में दिए गए) और अक्साइ चिन (1950 में तिब्बत में घुसपैठ के समय कब्जा) पर कब्जा किया है। यह राजमार्ग गिल्गिट- बल्टिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। पाकिस्तान और चीन पाक अधिकृत कश्मीर से जुड़ते हैं। पाकिस्तान ने कुछ समय तक गिल्गिट-बल्टिस्तान को उत्तरी क्षेत्र बताया था।
ग्वादर, मस्कट से केवल 400 किलोमीटर और होर्मुज जलडमरु-मध्य से 500 किमी. दूर है, जिससे होकर खाड़ी का सारा तेल गुजरता है। इसके अलावा इससे अफ्रीका से निकटता भी है। चीन वास्तव में अरबों डॉलर का निवेश करके अधिकांश अफ्रीका पर प्रभुत्व हासिल कर चुका है। इसके अलावा चीन पाकिस्तान से प्राकृतिक संसाधनों की खरीद भी कर रहा है।
पाकिस्तान एक बड़ा बाजार भी है। चीन पाकिस्तान और खाड़ी देशों में अपने सस्ते उत्पादों को भरेगा और अत्यधिक मुनाफा कमाएगा। उसकी नजदीकी नए मित्र श्रीलंका से भी बढ़ेगी। यदि अमेरिका/ब्रिटेन नियंत्रण वाले मलक्का जलडमरुमध्य-सिंगापुर या हिंद महासागर में भारत उसे रोकने का फैसला लेता है तो चीन को कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि उसके पास CPEC है। लेकिन CPEC के बावजूद चीन की महत्वाकांक्षा की सफलता काराकोरम राजमार्ग पर निर्भर है। जो इस पर निर्भर करता है कि पाक अधिकृत कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा बरकरार रहे।
लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था और क्षेत्र में चीन की रणनीतिक स्थिति सुरक्षित करने के लिए CPEC चीन की उम्मीद है। इसका भविष्य काराकोरम-हिन्दुकुश-पामीर क्षेत्र पर निर्भर है जो प्राचीन समय से रणनीतिक रुप से संवेदनशील रहा है और उसे रेशम मार्ग कहा जाता था। चीन नए रेशम मार्ग पर नियंत्रण हासिल करना चाहता है। यदि भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर पर नियंत्रण कर लिया तो वह काराकोरम राजमार्ग पर कब्जा कर उसे बंद कर देगा। तब कोई CPEC या रेशम मार्ग नहीं होगा। यही पूरा खेल है। CPEC और राजमार्ग प्राथमिक तौर पर सैन्य कार्यों के लिए हैं न कि नागरिक उपयोग के लिए।
अंत में पाकिस्तान का सर्वोच्च उद्देश्य एक इस्लामी खिलाफत स्थापित करना है। इसके बावजूद चीन CPEC के माध्यम से उसकी मदद करता है।
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जिनजियांग दरवाजा
चीन अपने भूबद्ध जिनजियांग क्षेत्र को खोलकर इसे CPEC के माध्यम से मध्य और पश्चिम एशिया से जोड़ना चाहता है। CPEC की योजना में आधारभूत ढांचागत और ऊर्जा परियोजनाएं भी शामिल हैं।
काराकोरम राजमार्ग
चीन ने इस राजमार्ग के चौड़ीकरण और उन्नतिकरण का कार्य शुरु कर दिया है। वर्तमान में वर्ष में केवल 5 महीने संचालित रहने वाले इस राजमार्ग के समानांतर राजमार्ग निर्माण की योजना है। 11 अरब डॉलर की लागत से निर्मित होने वाले इस राजमार्ग का अधिकांश हिस्सा सुरंगों से ढंका होगा जो पूरे वर्ष चलेगा, जिससे सैन्य और आर्थिक लाभ होगा।
काशगर-ग्वादर रेलवे और पाइपलाइन
परियोजना के सर्वाधिक जटिल हिस्से का व्यवहार्य अध्ययन चल रहा है, इसकी लागत 20 वर्षों में 35 अरब डॉलर लगाई गई है। चीन ने पश्चिम एशिया के तेल को ग्वादर से जिंजियांग पहुंचाने के लिए एक समानांतर पाइपलाइन का प्रस्ताव भी दिया है लेकिन सुरक्षा और व्यवहारिक संदेह कायम हैं।
काशगर
मुक्त व्यापार क्षेत्र का निर्माण 2010 में प्रारंभ हुआ। लेकिन जोन में निवेश आकर्षित करने में कठिनाई हो रही है। इसका कारण निरंतर हिंसा है। पाकिस्तान स्थित उइगर आतंकवादियों ने 2011 में काशगर में कई बम धमाके किए जिसमें 40 लोगों की मौत हुई। होतान में भी स्थानीय प्रशासन पर बम हमले हुए।
ग्वादर
चीन की ओवरसीज पोर्ट होल्डिंग कंपनी अरब सागर में एक गहरे समुद्री बंदरगाह का निर्माण कर रही है। कंपनी की योजना 900 हेक्टेयर में मुक्त व्यापार क्षेत्र का निर्माण करने की है लेकिन भूमि अधिग्रहण की समस्या के कारण इसे धक्का पहुंचा है।
चश्मा
चीन ने 300 मेगावॉट के दो परमाणु रिएक्टरों का निर्माण किया है। परमाणु प्रसार के भय के बीच 340 मेगावॉट के दो अन्य परमाणु रिएक्टरों का निर्माण कार्य जारी है।
कराची
बीजिंग ने नवीन विकसित 1100 मेगावॉट के परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के एक सौदे पर सहमति जाहिर की है।
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चीन-पाक आर्थिक गलियारा
 शी जिनपिंग की प्रिय ‘एक क्षेत्र, एक सड़क’पहल की यह एक प्रमुख परियोजना है, जो अप्रैल 2015 में प्रारंभ की गई।
 गलियारे में 2,400 किमी. लंबा सड़क तंत्र होगा, जिंजियांग से अरब सागर के ग्वादर बंदरगाह तक सड़क, रेल और पाइपलाइन तंत्र होगा।
 इस पहल के पहले हिस्से के तौर पर चीन पाक अधिकृत कश्मीर से गुजर रहे काराकोरम राजमार्ग का पहले ही विस्तार कर रहा है।
 पाकिस्तान को गलियारे में आधारभूत ढांचे और ऊर्जा परियोजनाओं के द्वारा 46 अरब डॉलर के निवेश की उम्मीद है।
 भारत ने इस परियोजना के गिल्गिट-बल्टिस्तान से गुजरने पर आपत्ति उठाई है, जो इस क्षेत्र को जम्मू एवं कश्मीर के अंग के रुप में देखता है।

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