तनातनी के बीच

सीमा पर चल रही तनातनी के बीच जासूसी करते पकड़े जाने पर बुधवार को सरकार ने पाकिस्तानी उच्चायोग के एक कर्मचारी को, उचित ही, देश छोड़ने का आदेश दिया। यों दूसरे देश में जासूसी, और खासकर एक ऐसे देश में, जिससे रिश्ते तनावपूर्ण हों, हैरानी की बात नहीं है। पर ताजा खुलासे का जो पहलू ज्यादा चिंताजनक है, वह यह कि पाकिस्तानी उच्चायोग का एक कर्मचारी इसमें शामिल पाया गया। उससे पैसे लेकर सूचनाएं साझा करने वाले राजस्थान के तीन निवासियों में से दो को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने गिरफ्तार कर लिया। विदेश मंत्रालय ने पाक उच्चायुक्त को तलब कर उन्हें सख्त हिदायत दी है कि उनका कोई भी सदस्य शत्रुतापूर्ण कार्रवाई न करे। ऐसा लगता है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी बौखलाई हुई है और तरह-तरह से भारत के खिलाफ साजिशों में मुब्तिला है। पाक उच्चायोग के वीजा विभाग में काम करने वाले महबूब अख्तर को जासूसी के शक में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसने कबूल किया कि वह आइएसआइ के लिए गुप्त सूचनाएं एकत्र और मुहैया कराने में शामिल रहा है। उसके पास से एक फर्जी आधार कार्ड भी बरामद हुआ, जिसमें उसने अपना नाम महबूब राजपूत और पता दिल्ली के चांदनी चौक का दर्ज कराया था। जो मकान नंबर दिया है, वह वास्तव में जीबी रोड का है। आरोप है कि महबूब अख्तर ने सीमा पर बीएसएफ की तैनाती बताने वाले तथा कुछ और रक्षा दस्तावेज आइएसआइ तक पहुंचाए हैं।

अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत जासूसी के आरोप में पकड़े गए कर्मचारी को पाक उच्चायोग को सौंपना पड़ा, क्योंकि उसे कुछ राजनयिक छूट हासिल है। लेकिन सरकार ने उसे यहां अस्वीकृत व्यक्तिबता कर शनिवार तक सपरिवार भारत छोड़ने के लिए कहा। विदेश सचिव एस जयशंकर ने इस मामले में पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित को तलब कर उन्हें अख्तर की जासूसी के प्रमाण सौंप दिए हैं। इस घटना से झुंझलाकर पाकिस्तान ने भी भारतीय उच्चायोग के कर्मचारी सुरजीत सिंह को अपने यहां अवांछनीय व्यक्ति बता कर उनतीस अक्तूबर तक परिवार समेत पाकिस्तान छोड़ने का आदेश सुना दिया। पाकिस्तान के विदेश सचिव एजाज चौधरी ने भारतीय उच्चायुक्त गौतम बंबावले को तलब कर उन्हें मामले की जानकारी दी। हालांकि पाकिस्तान ने जासूसी के आरोपों का कोई ब्योरा नहीं दिया।
कूटनीतिक हलकों में भी यही माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने प्रतिक्रियास्वरूप और खिसियाहट में यह कदम उठाया, और इस तरह अपना पलड़ा बराबर करने की कोशिश की है। अगर इसे कूटनीतिक चश्मे से भी देखा जाए तो तेरह सालों में यह तीसरा मौका है, जब पाकिस्तान ने अपने देश के किसी व्यक्ति के पकड़े जाने पर ऐसी प्रतिक्रिया की है। 2003 में वाजपेयी सरकार के दौरान पाकिस्तान के उच्चायोग का एक कर्मचारी अलगाववादियों को धन मुहैया कराते पकड़ा गया था। तब भारत सरकार ने पाक के उप-उच्चायुक्त समेत चार अधिकारियों को अवांछनीय मानते हुए देश से बाहर जाने का आदेश दिया था। बदले में पाकिस्तान ने भी ऐसा ही किया था। भारत लंबे समय से पाकिस्तान को जासूसी करने, आतंकी हमले करने जैसी उपद्रवी गतिविधियों के सबूत देता रहा है। लेकिन हर बार पाकिस्तान इन्हें नकार देता है। ताजा मामले में भी उसकी प्रतिक्रिया सच्चाई से मुंह चुराने की एक असफल कोशिश ही है।


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