आतंक के इलाके...

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा में पुलिस प्रशिक्षण केंद्र पर हुए हमले से सबक लेने की जरूरत है। तीन आतंकवादियों ने क्वेटा के पुलिस प्रशिक्षण केंद्र पर हमला बोला और साठ से ऊपर रंगरूटों को मौत के घाट उतार दिया। इसमें करीब सवा सौ लोग घायल हो गए। आतंकियों से निपटने में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को करीब चार घंटे लग गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां आतंकवादी किस कदर ताकतवर हो चुके हैं। इस प्रशिक्षण केंद्र पर पहले भी दो बार हमले हो चुके हैं, जिसमें भारी संख्या में पुलिसकर्मी मारे गए। मगर वहां सुरक्षा इंतजाम पुख्ता करने पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया कि तीन आतंकी परिसर में घुसे और इतनी बड़ी तादाद में लोगों को अपनी गोलियों का निशाना बनाया।
इस साल पाकिस्तान में हुए आतंकी हमलों में यह तीसरा बड़ा हमला है। मार्च में गुलशने-इकबाल पार्क में हुए फिदायीन हमले में चौहत्तर लोगों की जान चली गई थी। अगस्त में क्वेटा के ही सिविल अस्पताल पर फिदायीन हमले में तिहत्तर लोग मारे गए। क्वेटा में हुए ताजा हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है। दुनिया भर से दबाव पड़ रहा है कि पाकिस्तान को अपने यहां आतंकियों को पनाह देने से बाज आना चाहिए। मगर पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसी आइएसआइ चूंकि इन आतंकियों को अपने रणनीतिक मंसूबे पूरे करने के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं, इसलिए इनके खिलाफ सरकार का रुख नरम ही बना रहा है। पर जब ये दहशतगर्द अपने ही बेगुनाह लोगों का खून बहाने से परहेज नहीं करते, तब भी पाकिस्तान सरकार कोई सबक नहीं लेती, तो हैरानी होती है।
बलूचिस्तान पर पाकिस्तान सरकार की नजर शुरू से टेढ़ी रही है। वहां सुरक्षाबलों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ आवाजें उठती रही हैं। ऊपर से मजहबी कट्टरपंथी ताकतें कहर बरपाने से बाज नहीं आतीं। इस्लामिक स्टेट का ताजा हमला बंदूक के बल पर अपनी बात मनवाने का प्रयास है। पाकिस्तान आतंकवादियों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के मकसद से पालता-पोसता रहा है। मगर उसमें अब धार्मिक कट्टरता के चलते ऐसे धड़े बन गए हैं, जो इस्लाम के नाम पर पाकिस्तानी अवाम को भी निशाना बनाने से नहीं हिचकते। पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट के पांव पसारने के प्रमाण काफी पहले से हैं। अगर इस तरह हमले करके वह लोगों में दहशत फैलाता और धीरे-धीरे अपना प्रभाव जमा लेता है तो न सिर्फ पाकिस्तान से सटे मुल्कों के लिए, बल्कि पाकिस्तानी सत्ता के लिए भी बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

मगर पाकिस्तान सरकार की मुश्किल यह है कि वह सेना, आइएसआइ और कट्टरपंथी ताकतों की चंगुल में इस कदर फंस चुकी है कि आतंकवाद के खिलाफ कोई भी कड़ा कदम उठाना उसके लिए मुश्किल हो गया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के बावजूद वह वही करती है, जो सेना, आइएसआइ और कट्टरपंथी ताकतें चाहती हैं। आतंकवाद को पोसने का असर यह हुआ है कि पाकिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें प्रभावित हुई हैं, आम लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर नहीं पैदा हो पा रहे। इसके बावजूद अगर पाकिस्तान सरकार यह नहीं सोच पा रही कि आतंकवाद तरक्की के सारे रास्ते बंद कर देता है, वह उसके लिए भी मुसीबत बन जाता है, तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता। अगर वह सचमुच दहशतगर्दी खत्म करने को लेकर संजीदा होती तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद से इस समस्या से पार पाना मुश्किल न होता।

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