ट्रंप का तुरुप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पदभार संभालने के साथ ही अपने चुनावी वादों पर अमल करना शुरू कर दिया है। सबसे पहले उन्होंने सात मुसलिम बहुल देशों के नागरिकों को अमेरिकी वीजा देने पर रोक लगा दी है। शरणार्थियों के अमेरिका आने पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गई है। शनिवार को इससे संबंधित ट्रंप के कार्यकारी फैसले के बाद ही अमेरिकी प्रशासन ने कार्रवाई भी शुरू कर दी। हालांकि नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन की याचिका पर वहां की अदालत ने ट्रंप के आदेश के विरुद्ध फैसला सुना दिया। इस पर ट्रंप ने कहा कि वे मुसलिम समुदाय के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि सिर्फ मुसलिम आतंकवाद को रोकना चाहते हैं। मगर उनका यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा। स्वाभाविक ही उनके इस फैसले पर अमेरिका सहित दुनिया भर में विरोध शुरू हो गया है। यहां तक कि गूगल जैसी कंपनियों ने भी इस पर आपत्ति जताई है। गौरतलब है कि चुनाव के समय ट्रंप ने कहा था कि मुसलिम समुदाय के लोगों की प्रोफाइलिंग होनी चाहिए, यानी उनके धर्म, नस्ल आदि के आधार पर तय होना चाहिए कि वे अमेरिका के लिए कितने सहयोगी हैं।
दरअसल, 9/11 के आतंकी हमले के बाद से ही अमेरिका में एक बड़ा तबका मुसलमानों को संदेह से देखता आ रहा है। उन्हें लगता है कि मुसलिम देश आतंकवादियों को पनाह देते हैं और वे सब अमेरिका के खिलाफ नफरत से भरे हैं। इसलिए विभिन्न देशों से अमेरिका गए बहुत सारे मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करते रहे हैं। कई बार अनेक लोगों को सिर्फ इसलिए अमेरिकी प्रशासन की नाहक ज्यादतियों का सामना करना पड़ा कि उन्होंने दाढ़ी रखी थी या फिर वे मुसलिम थे। ऐसे में ट्रंप ने चुनाव प्रचार के समय मुसलिम समुदाय के खिलाफ कड़े कदम उठाने का वादा करके नस्लवादी भावनाओं को हवा दी थी। मुसलिम देशों के खिलाफ इस तरह भेदभावपूर्ण फैसला करके ट्रंप भले कुछ मुसलिम-विरोधी अमेरिकी लोगों की भावनाओं को तुष्ट करने में कामयाबी पा लें, पर इससे उनके लिए कई मुश्किलें पैदा होंगी।
ट्रंप ने भले सफाई दी हो कि वे मुसलिम समुदाय के खिलाफ नहीं हैं, पर शरणाथिर्यों के मामले में जिस तरह उन्होंने कहा कि ईसाइयों को प्राथमिकती दी जाएगी, उससे जाहिर है कि उनका कदम मानवीय आधार पर उचित नहीं है। यह ठीक है कि अमेरिका के विरुद्ध आइएसआइएस जैसे संगठन लगातार सक्रिय रहे हैं और वे मुसलिम समुदाय के युवाओं को बरगलाने में कामयाब होते रहे हैं, पर इसका यह अर्थ नहीं कि इस आधार पर मुसलिम देशों के सभी नागरिकों को संदिग्ध करार दे दिया जाए। बहुत-से लोग रोजगार, कारोबार, पढ़ाई-लिखाई के सिलसिले में अमेरिका आते-जाते रहते हैं। इसी तरह अमेरिकी लोगों को भी कारोबार आदि के सिलसिले में मुसलिम बहुल देशों का रुख करना पड़ता है। बहुत सारी अमेरिकी कंपनियों ने विभिन्न देशों में अपने कारोबार फैला रखे हैं। आश्चर्य नहीं, जब प्रतिबंधित मुसलिम बहुल देश भी प्रतिक्रिया में ऐसा ही कोई कदम उठाएं। इसलिए ट्रंप के ताजा फैसले से न सिर्फ मुसलिम देशों के लोगों, बल्कि अमेरिकी नागरिकों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। फिर, ताजा फैसले से मुसलिम बहुल देशों में आतंकवाद को अपनी जड़ें और मजबूत करने का मौका मिल सकता है। इस तरह चरमपंथ के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई बिखरने का भी अंदेशा बन सकता है। इसलिए आतंकवाद रोकने के लिए दूसरे व्यावहारिक तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए।

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