संस्कृति की सरहद

दुनिया में कहीं भी सांस्कृतिक गतिविधियों को सरहदों के जरिए रोकने की कोशिश कामयाब नहीं हो सकी। मगर कई बार दो देशों के बीच राजनीतिक उथल-पुथल या तनाव के हालात का सीधा असर वैसे फैसलों पर पड़ता है, जिनमें एक-दूसरे के संगीत, सिनेमा, नाटक या खेल वगैरह को सीमित या प्रतिबंधित करने की कोशिश की जाती है। पिछले कुछ समय से भारत और पाकिस्तान सीमा पर फौज के बीच जिस तरह के तनाव देखने में आए, उसका असर सांस्कृतिक क्षेत्र पर भी पड़ा। मसलन, पीईएमआरए यानी पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी ने बीते साल अक्तूबर में टीवी और रेडियो पर प्रसारित होने वाले भारतीय कार्यक्रमों पर पाबंदी लगा दी थी। निश्चित रूप से यह भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी का नतीजा था, लेकिन इसका बड़ा आर्थिक नुकसान न केवल वहां के फिल्म उद्योग को हुआ, बल्कि वे तमाम टीवी दर्शक भारतीय फिल्मों और धारावाहिकों को देखने से वंचित हो गए, जो कई वजहों से भारतीय परिवेश से अपना सांस्कृतिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

अब पीईएमआरए की एक रिपोर्ट अदालत में पेश किए जाने के बाद सोमवार को लाहौर के हाईकोर्ट ने निजी टीवी चैनलों को भारतीय फिल्में दिखाने की इजाजत दे दी है। हालांकि पीईएमआरए के साथ निजी चैनलों के समझौते की शर्तों में यह शामिल है कि उन्हें भारतीय फिल्में दिखाने की अनुमति है। लेकिन सीमा पर उपजे तनाव के राजनीतिक शक्ल अख्तियार कर लेने के बाद वहां भारतीय कार्यक्रम प्रसारित करने से रोक दिया गया था। इस मसले पर दायर याचिका में कहा गया था कि भारतीय कार्यक्रम पाकिस्तान के चैनल पर बहुत लोकप्रिय है। जाहिर है, लोकप्रियता का यह सिरा व्यापक जनता से लेकर अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका तक से जुड़ा है। हैरानी की बात यह है कि एक ओर भारतीय फिल्मों को पाकिस्तान में सिनेमा घरों में दिखाए जाने पर रोक नहीं थी, लेकिन टीवी चैनलों पर इनके प्रसारण को बाधित किया जा रहा था। हालांकि ऐसा नहीं है कि पाबंदी लगाने जैसी प्रतिक्रिया केवल पाकिस्तान में दिखाई देती है। उरी में हुए आतंकवादी हमले में भारतीय सैनिकों कंी शहादत के बाद इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ने पाकिस्तानी कलाकारों को प्रतिबंधित कर दिया था। यही नहीं, उन भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन को रोकने की धमकी दी गई थी, जिनमें पाकिस्तानी कलाकारों ने काम किया। भारत में कुछ संगठनों की ओर से भी ऐसा ही अभियान चलाया गया। इसलिए पाकिस्तान में टीवी चैनलों पर बॉलीवुड की फिल्में नहीं दिखाना दरअसल ऐसी ही प्रतिक्रिया की एक कड़ी थी।

विडंबना यह है कि दो देशों के बीच खेल, संगीत, सिनेमा, नाटक और दूसरी सांस्कृतिक गतिविधियों के आदान-प्रदान के जरिए तनाव की बर्फ पिघलाने में मदद मिल सकती है, लेकिन राजनीतिक तनाव की आग की चपेट में वे भी आ जाते हैं। खासकर भारत और पाकिस्तान की सामान्य जनता के बीच जिस तरह सांस्कृतिक अभिरुचियां रही हैं, उसमें दोनों ही खुद को एक-दूसरे के करीब और अपना-सा पाते हैं। जिस तरह भारतीय फिल्में पाकिस्तानी लोग पूरे उत्साह से देखते हैं, उसी तरह पाकिस्तान में बनी कई फिल्में और टीवी धारावाहिक भी भारत में काफी लोकप्रिय हुए। आतंकवाद से इतर भारत और पाकिस्तान के साधारण लोग एक-दूसरे से सांस्कृतिक रूप से करीब से जुड़े हुए हैं। इसलिए अच्छा यह हो कि आतंकवाद या राजनीतिक आग्रहों से इसी मोर्चे पर निपटा जाए, न कि दोनों तरफ की आम जनता को इसमें शामिल किया जाए।

Comments