जल संवर्धन (हाइड्रोपोनिक्स)

हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) मिट्टी रहित कृषि संस्कृति क्या है \
केवल पानी में या बालू अथवा कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु और पोषक तत्वों की मदद से बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक को जल संवर्धन  (हाइड्रोपोनिक) कहते हैं। इसे मिट्टी रहित कृषि (Soil less agriculture) अथवा जलीय कृषि (hydro agriculture) भी कहते हैं।हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों 'हाइड्रो(Hydro) तथा 'पोनोस(Ponos) से मिलकर हुई है।

हाइड्रो का मतलब है पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य।            
हाइड्रोपोनिक्स में पौधों को नियंत्रित परिस्थितियों में 15 से 30 डिग्री सेल्सियसताप पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत नमी में उगाया जाता है।

पौधे उगाने की यह तकनीक पर्यावरण के लिए काफी सही होती है | इन  पौधों के लिए कम पानी की जरूरत होती है, जिससे पानी की बचत होती है।कीटनाशकों के भी काफी कम प्रयोग की आवश्यकता होती है | यह    एक ऊर्ध्वाधर खेती की पद्धति है, अतः इसके माध्यम से बहुत ही कम स्थानमें ज्यादा फसलों को उगाया जा सकता है। 

सामान्यतया पेड़&पौधे अपने आवश्यक पोषक तत्व जमीन से लेते हैं, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिये पौधों में एक विशेष प्रकार का घोल डाला जाता है।
इस घोल में पौधों की वृद्धि के लिये आवश्यक खनिज एवं पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। 
इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है, ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहें। पानी, कंकड़ों या बालू आदि में उगाए जाने वाले पौधों में इस घोल की महीने में एक&दो बार केवल कुछ बूँदें ही डाली जाती हैं।

विश्व और हमारे देश में हाइड्रोपोनिक्स का उपयोग
· हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल अमेरिका,आस्ट्रेलिया,जापान समेत कई पश्चिमी यूरोपीय देशों में फसल उत्पादन के लिये किया जा रहा है।
· हमारे देश में भी राजस्थान जैसे शुष्क  मरूस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ चारे के उत्पादन के लिये पर्याप्त  उपजाऊ जमीन नहीं है, उन क्षेत्रों के लिए यह तकनीक एक वरदान सिद्ध हो सकती है।पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर में मक्का, जौ, जई और उच्च गुणवत्ता वाले हरे  चारे वाली फसलें उगाने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
· हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से पंजाब में आलू उगाया जा रहा है।
· भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के गोवा परिसर में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से हरा चारा उत्पादन की  इकाई की स्थापना की गई है।  ऐसी ही दस और इकाइयाँ गोवा की विभिन्न डेरी&कोऑपरेटिव सोसाइटियों में लगाई गई हैं।

हाइड्रोपोनिक्स के प्रमुख लाभ
परंपरागत तकनीक से पौधे और फसलें उगाने की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के कई लाभ हैं। 
· इस तकनीक से विपरीत जलवायु परिस्थितियों में उन क्षेत्रों में भी पौधे उगाए जा सकते हैं, जहाँ जमीन की कमी है अथवा वहाँ की मिट्टी उपजाऊ नहीं है।
· इस तकनीक से बेहद कम खर्च में पौधे और फसलें उगाई जा सकती हैं |एक अनुमान के अनुसार 5 से 8 इंच ऊंचाई वाले पौधे के लिए 1 से भी कम का खर्च आता है |
· पानी की 80% तक बचत, मान लीजिये आपने 2 पौधे लगाए 1 जमीन पर और एक हाइड्रोपोनिक्स पर,   तो जो जमीन में लगा हुआ पौधा है उसे हाइड्रोपोनिक्स वाले पौधे की तुलना में 80%  ज्यादा पानी देना होगा। 
· बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण जब फसल और पौधों के लिए जमीन की कमी होती जा रही हो तो बिना मिट्टी के पौधे उगाने वाली यह तकनीक काफी उपयोगी सिद्ध होगी।यदि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है तो कई तरह की शाक-सब्जियां बड़े पैमाने पर अपने घरों और बड़ी-बड़ी इमारतों में ही बिना मिट्टी के उगाई जा सकेंगी। इससे न केवल खाने पीने के सामान की कीमतें कम होगी बल्कि परिवहन का खर्च भी कम हो जाएगा ।
· सामान्य कृषि पद्धति में भूमि की उपलब्धता,  उसकी उर्वरता] जल की अधिक आवश्यकता, लवणता की समस्या, खरपतवार  की समस्या,  मृदा प्रकृति  PH की समस्या, फसल उत्पादकता,अधिक श्रम बल  समय की आवश्यकता,  अधिक जनसंख्या निर्भरता, परिवहन और  संग्रहण की समस्या, अधिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और उससे होने वाली मानव स्वास्थ्य  और पर्यावरण संबंधी कई समस्याएं देखने को  मिलती हैं |ऐसे में हाइड्रोपोनिक या जल संवर्धन की यह  तकनीक इन तमाम समस्याओं का एक बेहतर  समाधान  विकल्प उपलब्ध करा सकती है।
·  चूँकि इस विधि से पैदा किए गए पौधों और फसलों का मिट्टी और जमीन से कोई संबंध नहीं होता, इसलिये इनमें बीमारियाँ कम होती हैं और इसीलिये  इनके उत्पादन में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है।
·   हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों में पोषक तत्वों का विशेष घोल डाला जाता है, इसलिये इसमें  उर्वरकों एवं अन्य रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता नहीं होती है।जिसका फायदा  केवल हमारे पर्यावरण को होगा, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिये भी अच्छा होगा। 
· हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से उगाई गइ सब्ज़ियाँ और पौधे अधिक पौष्टिक होते हैं।
· हाइड्रोपोनिक्स विधि से  केवल घरों एवं फ्लैटों में पौधे उगाए जा सकते हैं, बल्कि बाहर खेतों में भी  फसलें उगाई जा सकती हैं।इस विधि से उगाई गई फसलें और पौधे आधे समय में ही तैयार हो जाते हैं।
· जमीन में उगाए जाने वाले पौधों की अपेक्षा इस तकनीक में बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है।इस तरह यह जमीन और सिंचाई प्रणाली के अतिरिक्त दबाव से छुटकारा दिलाने में सहायक होती है।
· हाइड़्रोपोनिक्स तकनीक में आप जलवायु को फसलों की सुविधा अनुसार नियंत्रित कर सकते हैं।यह किसी 'हरित गृहकी ही तरह है जिसमें आप ताप, नमी, प्रकाश की तीव्रता, वायु की प्रकृति  मात्राआदि को नियंत्रित कर सकते हैं |अर्थात इसकी मदद से पूरे वर्ष भर बिना ऋतु के कोई भी फसल उत्पादित की जा सकती है।
· मक्के से तैयार किया गया हाइड्रोपोनिक्स चारा  पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होता है |प्रयोगों में पाया गया है कि परंपरागत हरे चारे में क्रूड प्रोटीन 10.70 प्रतिशत होती हैजबकि  हाइड्रोपोनिक हरे चारे में क्रूड प्रोटीन 13.6  प्रतिशत होती है |लेकिन परंपरागत हरे चारे की अपेक्षा  हाइड्रोपोनिक हरे चारे में क्रूड फाइबर कम होता है।हाइड्रोपोनिक हरे चारे से अधिक ऊर्जा] विटामिन और अधिक दूध का उत्पादन होता है और जानवरों की प्रजनन क्षमता में भी सुधार होता है।
· मिट्टी में पैदा होने वाले पौधों तथा इस तकनीक से उगाए जाने वाले पौधों की पैदावार में काफी अंतर होता है।इस तकनीक से एक किलो मक्का से पांच से सात किलो चारा दस दिन में बनता है, जबकि सामान्य  कृषि पद्धति में यह उत्पादकता अपेक्षाकृत कम है।
· हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का एक फायदा यह भी है कि इस तकनीक से गेहूँ जैसे अनाजों की पौध 7 से 8 दिन में तैयार हो सकती है, जबकि सामान्यतः इनकी पौध तैयार होने में 28 से 30 दिन लगते हैं।

 हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की चुनौती

· सबसे बड़ी चुनौती तो इस तकनीक को इस्तेमाल करने में आवश्यक शुरुआती खर्चे की है। हाइड्रोपोनिक्स का खर्च शुरुआत में ज्यादा होता है, पर एक दो फसल के बाद यह काफी   फायदेमंद हो जाती है।
· चूँकि इस विधि में पानी का पंपों की सहायता से पुनः इस्तेमाल किया जाता है, उसके लिये लगातार  विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता होती है।इसलिये दूसरी बड़ी चुनौती है हर वक्त विद्युत आपूर्ति बनाए रखना।

· जल और विद्युत संबंधित जोखिम-  हाइड्रोपोनिक तकनीक मुख्यतः जल और विद्युत आपूर्ति पर निर्भर है ऐसे में विद्युत उपकरणों में कोई भी खराबी  जाने और उसके पानी से संपर्क में आने पर विद्युत आघात का खतरा हो सकता है।
· हाइड्रोपानिक बागवानी या कृषि में देखभाल हेतु पर्याप्त समय और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।
· हाइड्रोपोनिक तंत्र के फेल होने पर सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
· हाइड्रोपोनिक मशीनीतंत्र में रिसाव होने या उसके अवसादी जमाव  रखरखाव की समस्या।
· हाइड्रोपोनिक पद्धति में बंद जल तंत्र में कृषि उत्पादन किया जाता है, ऐसे में यदि किसी पौधे में कोई बीमारी या कीट लग जाते हैं तो उनका पानी के माध्यम से पूरे तंत्र में तेजी से फैलना आसान हो  जाएगा।
·  अधिक कठोर जल  हाइड्रोपोनिक्स तंत्र और पौधों में पोषण अनुपात संबंधी समस्या पैदा कर सकता है।
·   लोगों को लगता है कि हाइड्रोपोनिक्स एक बहुत बड़ी टेक्नोलॉजी है जिसे केवल वैज्ञानिक या बहुत
पढ़ा
-लिखा व्यक्ति ही कर सकता है। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है |अतः जागरूकता का व्यापक अभाव भी एक प्रमुख चुनौती है।

आगे की राह या चुनौतियों का समाधान :
· हाइड्रोपोनिक तंत्र को शुरू करने से पूर्व उपकरणों  कल&पुर्जों की सावधानी पूर्वक जांच कर लेनी चाहिए।
· बीमारी या कीट के संक्रमण की समस्या के समाधान हेतु उपकरणों की ठीक से सफाई  नियमित   देखभाल की जरूरत होती है। इसके अलावा पौधों के स्वास्थ्य की समय -समय  पर जांच भी आवश्यक है, ताकि समय रहते बिमारी या संक्रमण को नियंत्रित किया जा   सके।
· हाइड्रोपोनिक प्रणाली के प्रारंभिक खर्च बोझ को कम करने के लिए सरकार द्वारा जैविक खेती की हीतरह इसे भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है तथा बैंको द्वारा वित्तीय सहायता एवं सहकारी  संगठनों को भी बढ़ावा देना चाहिए।
· हाइड्रोपोनिक तंत्र में कठोर जल संबंधी समस्या के समाधान  हेतु इसके लिए विशेष फिल्टरों का उपयोग किया जा  सकता है तथा इसके लिए 200 PPM से कम के जल का  उपयोग सही होगा।
· लगातार विद्युत प्रवाह और जल की आपूर्ति के लिए सोलर  पंपों  सौर विद्युत प्रणाली का भी एक विकल्प के रूप   उपयोग किया जा सकता है।इसके लिए 'सौर सुजलाजैसी योजनाओं द्वारा सरकार  किसानों को विशेष प्रोत्साहन दे सकती है।
· सरकार द्वारा किसानों को इस तकनीकि के बारे में उचित  जानकारी, प्रशिक्षण और जागरूक करने हेतु विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है।इसके लिए किसान काल सेंटर द्वारा किसानों को वैज्ञानिक सलाह, नुक्कड़ नाटकोंसेलिब्रिटी द्वारा विज्ञापन,  टीवी,  रेडियो समाचार पत्रों  अन्य संचार माध्यमों का उपयोग  किया जा सकता है।इसके अलावा स्वयं सहायता समूहों, सहकारी, स्थानीय व  गैर सरकारी संगठनों की भी इस कार्य में मदद ली जा सकती है।

यद्यपि इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज और पोषक  तत्व सही समय पर सही मात्रा में मिलते रहना चाहिए।हाइड्रोपोनिक्स में इन तत्वों की आपूर्ति हम करते हैं, जबकि सामान्य कृषि पद्धति में जमीन से पौधे अपने आप लेते रहते हैं।फिर भी जलीय कृषि की यह तकनीक मानव स्वास्थ्य, भविष्य की उसकी खाद्य जरूरतों और पर्यावरण  अनुकूल सतत कृषि पद्धति के अनुकूल है।

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